सरस्वती चालीसा: माता सरस्वती देवी को ज्ञान, विद्या एवं बुद्धि की देवी कहा जाता है। श्री सरस्वती चालीसा माता सरस्वती को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अचूक प्रार्थना है। श्री सरस्वती चालीसा को सच्चे ह्रदय, एवं भक्ति के साथ अपने आपको माता के चरणों में समर्पित करते हुए पढ़ने से ज्ञान, बुद्धि, विद्या एवं धन की प्राप्ति होती है। श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति हर कार्य में सफलता प्राप्त करता है।
श्री सरस्वती चालीसा का पाठ समस्त जगत वासियों के लिए अत्यंत लाभकारी है। श्री सरस्वती चालीसा के पाठ से अद्भुत एवं अलौकिक लाभ व्यक्ति के जीवन में देखने को मिलते हैं। श्री सरस्वती चालीसा का पाठ समस्त जगत के लिए अत्यंत फलदायक होता है।
Saraswati Chalisa pdf लिंक
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Saraswati Chalisa pdf संक्षिप्त विवरण
File Name | Saraswati Chalisa Pdf |
File Type | |
Language | Hindi |
Category | Religion |
No. of Pages | 6 Pages |
File Size | 640 |
File Status | Active |
Uploaded By | Rajesh Kushwaha |
Saraswati Chalisa Pdf Lyrics
सरस्वती चालीसा pdf लिरिक्स हिंदी भाषा में दे दिया गया है। आप अपने सुविधानुसार Saraswati Chalisa को लिरिक्स से याद कर सकते है।
श्री सरस्वती चालीसा
॥दोहा॥
जनक जननि पद कमल रज, निज मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु॥
माता-पिता के चरणों की धूल मस्तक पर धारण करते हुए हे सरस्वती मां, आपकी वंदना करता हूं, हे दातारी मुझे बुद्धि की शक्ति दो। आपकी अमित और अनंत महिमा पूरे संसार में व्याप्त है। हे मां रामसागर (चालीसा लेखक) के पापों का हरण अब आप ही कर सकती हैं।
॥चौपाई॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥
जय जय जय वीणाकर धारी।
करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुजधारी माता।
सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती।
जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥
तबहि मातु ले निज अवतारा।
पाप हीन करती महि तारा॥
बुद्धि का बल रखने वाली अर्थात समस्त ज्ञान शक्ति को रखने वाली हे सरस्वती मां, आपकी जय हो। सब कुछ जानने वाली, कभी न मरने वाली, कभी न नष्ट होने वाली मां सरस्वती, आपकी जय हो। अपने हाथों में वीणा धारण करने वाली व हंस की सवारी करने वाली माता सरस्वती आपकी जय हो। हे मां आपका चार भुजाओं वाला रुप पूरे संसार में प्रसिद्ध है। जब-जब इस दुनिया में पाप बुद्धि अर्थात विनाशकारी और अपवित्र वैचारिक कृत्यों का चलन बढता है तो धर्म की ज्योति फीकी हो जाती है। हे मां तब आप अवतार रुप धारण करती हैं व इस धरती को पाप मुक्त करती हैं।
बाल्मीकि जी थे हत्यारा।
तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई।
आदि कवी की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।
तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्धाना।
भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा।
केवल कृपा आपकी अम्बा॥
हे मां सरस्वती, जो वाल्मीकि जी हत्यारे हुआ करते थे, उनको आपसे जो प्रसाद मिला, उसे पूरा संसार जानता है। आपकी दया दृष्टि से रामायण की रचना कर उन्होंनें आदि कवि की पदवी प्राप्त की। हे मां आपकी कृपा दृष्टि से ही कालिदास जी प्रसिद्ध हुये। तुलसीदास, सूरदास जैसे विद्वान और भी कितने ही ज्ञानी हुए हैं, उन्हें और किसी का सहारा नहीं था, ये सब केवल आपकी ही कृपा से विद्वान हुए मां। (सरस्वती मां को बुद्धि व ज्ञान की देवी कहते हैं, इसलिए संसार में बुद्धि से, ज्ञान से, वाणी से, संगीत से जिन्होंनें जितनी उपलब्धियां हासिल की हैं, सब मां सरस्वती की कृपा मानी जाती है।)
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।
दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करै अपराध बहूता।
तेहि न धरइ चित सुन्दर माता॥
राखु लाज जननी अब मेरी।
विनय करूं बहु भांति घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।
कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
हे मां भवानी, उसी तरह मुझ जैसे दीन दुखी को अपना दास जानकर अपनी कृपा करो। हे मां, पुत्र तो बहुत से अपराध, बहुत सी गलतियां करते रहते हैं, आप उन्हें अपने चित में धारण न करें अर्थात मेरी गलतियों को क्षमा करें, उन्हें भुला दें। हे मां मैं कई तरीके से आपकी प्रार्थना करता हूं, मेरी लाज रखना। मुझ अनाथ को सिर्फ आपका सहारा है। हे मां जगदंबा दया करना, आपकी जय हो, जय हो।
मधु कैटभ जो अति बलवाना।
बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
समर हजार पांच में घोरा।
फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥
मातु सहाय भई तेहि काला।
बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।
छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
रक्तबीज से समरथ पापी।
सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा।
बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।
छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥
मधु कैटभ जैसे शक्तिशाली दैत्यों ने भगवान विष्णू से जब युद्ध करने की ठानी, तो पांच हजार साल तक युद्ध करने के बाद भी विष्णु भगवान उन्हें नहीं मार सके। हें मां तब आपने ही भगवान विष्णु की मदद की और राक्षसों की बुद्धि उलट दी। इस प्रकार उन राक्षसों का वध हुआ। हे मां मेरा मनोरथ भी पूरा करो। चंड-मुंड जैसे विख्यात राक्षस का संहार भी आपने क्षण में कर दिया। रक्तबीज जैसे ताकतवर पापी जिनसे देवता, ऋषि-मुनि सहित पूरी पृथ्वी भय से कांपने लगी थी। हे मां आपने उस दुष्ट का शीष बड़ी ही आसानी से काट कर केले की तरह खा लिया। हे मां जगदंबा मैं बार-बार आपकी प्रार्थना करता हूं, आपको नमन करता हूं। हे मां, पूरे संसार में महापापी के रुप विख्यात शुंभ-निशुंभ नामक राक्षसों का भी आपने एक पल में संहार कर दिया।
भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई।
रामचंद्र बनवास कराई॥
एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा।
सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना।
निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी।
नाम अपार है दानव भक्षी॥
हे मां सरस्वती, आपने ही भरत की मां केकैयी की बुद्धि फेरकर भगवान श्री रामचंद्र को वनवास करवाया। इसी प्रकार रावण का वध भी आपने करवाकर देवताओं, मनुष्यों, ऋषि-मुनियों सबको सुख दिया। आपकी विजय गाथाएं तो अनादि काल से हैं, अनंत हैं इसलिए आपके यश का गुणगान करने का सामर्थ्य कोई नहीं रखता। जिनकी रक्षक बनकर आप खड़ी हों, उन्हें स्वयं भगवान विष्णु या फिर भगवान शिव भी नहीं मार सकते। रक्त दंतिका, शताक्षी, दानव भक्षी जैसे आपके अनेक नाम हैं।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता।
कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित जो मारन चाहै।
कानन में घेरे मृग नाहै॥
सागर मध्य पोत के भंगे।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।
हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई।
संशय इसमें करइ न कोई॥
हे मां दुर्गम अर्थात मुश्किल से मुश्किल कार्यों को करने के कारण समस्त संसार ने आपको दुर्गा कहा। हे मां आप कष्टों का हरण करने वाली हैं, आप जब भी कृपा करती हैं, सुख की प्राप्ती होती है, अर्थात सुख देती हैं। जब कोई राजा क्रोधित होकर मारना चाहता हो, या फिर जंगल में खूंखार जानवरों से घिरे हों, या फिर समुद्र के बीच जब साथ कोई न हो और तूफान से घिर जाएं, भूत प्रेत सताते हों या फिर गरीबी अथवा किसी भी प्रकार के कष्ट सताते हों, हे मां आपका नाप जपते ही सब कुछ ठीक हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं है अर्थात इसमें कोई शक नहीं है कि आपका नाम जपने से बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता है, दूर हो जाता है।
पुत्रहीन जो आतुर भाई।
सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥
करै पाठ नित यह चालीसा।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥
धूपादिक नैवेद्य चढावै।
संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करै हमेशा।
निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें शत बारा।
बंदी पाश दूर हो सारा॥
करहु कृपा भवमुक्ति भवानी।
मो कहं दास सदा निज जानी॥
जो संतानहीन हैं, वे और सब को छोड़कर आप माता की पूजा करें और हर रोज इस चालीसा का पाठ करें, तो उन्हें गुणवान व सुंदर संतान की प्राप्ति होगी। साथ ही माता पर धूप आदि नैवेद्य चढ़ाने से सारे संकट दूर हो जाते हैं। जो भी माता की भक्ति करता है, कष्ट उसके पास नहीं फटकते अर्थात किसी प्रकार का दुख उनके करीब नहीं आता। जो भी सौ बार बंदी पाठ करता है, उसके बंदी पाश दूर हो जाते हैं। हे माता भवानी सदा अपना दास समझकर, मुझ पर कृपा करें व इस भवसागर से मुक्ति दें।
॥दोहा॥
माता सूरज कान्ति तव,
अंधकार मम रूप।
डूबन ते रक्षा करहु,
परूं न मैं भव-कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि, सुनहु सरस्वति मातु।
अधम रामसागरहिं तुम, आश्रय देउ पुनातु॥
हे मां आपकी दमक सूर्य के समान है, तो मेरा रूप अंधकार जैसा है। मुझे भवसागर रुपी कुंए में डूबने से बचाओ। हे मां सरस्वती मुझे बल, बुद्धि और विद्या का दान दीजिये। हे मां इस पापी रामसागर को अपना आश्रय देकर पवित्र करें।
श्री सरस्वती चालीसा का महत्व
श्री सरस्वती चालीसा का पाठ सच्चे ह्रदय व् भक्ति के साथ करने से व्यक्ति के जीवन में अनेको लाभ दिखायी देते है। श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करना अत्यंत फलदायक होता है। श्री सरस्वती चालीसा समस्त व्यक्तियों को पढ़नी चाहिए। श्री सरस्वती माता को ज्ञान, बुद्धि विद्या एवं कला की देवी माना जाता है।
माता सरस्वती की कृपा से व्यक्ति अत्यंत बुद्धिमान एवं अत्यंत ज्ञानी होता है। श्री सरस्वती चालीसा के पाठ से माता सरस्वती प्रसन्न होती हैं। एवं उनकी अपार कृपा प्राप्त होती है। इनके आशीर्वाद से व्यक्ति तेजस्वी, ज्ञानी, बुद्धिमान, एवं पराक्रमी होता है।
सरस्वती चालीसा पढ़ने से लाभ
श्री सरस्वती चालीसा पढ़ने के अनंत लाभ हैं। जिसके कुछ लाभ निम्नलिखित है।
- श्री सरस्वती चालीसा के पाठ से व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति होती है। एवं मन एकाग्र रहता है। शिक्षारत व्यक्तियों को शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। एवं व्यक्ति प्रत्येक प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त करते हुए उन्नति करता है। पढाई में मन लगता है। बुद्धि का विकास होता है।
- श्री सरस्वती माता ज्ञान, बुद्धि एवं विद्या की देवी हैं। श्री सरस्वती चालीसा के पाठ से ज्ञान, बुद्धि एवं विद्या की प्राप्ति होती है। अविवेकी, अज्ञानी व्यक्ति भी माता सरस्वती चालीसा का पाठ करके बुद्धिमान एवं ज्ञानी बन जाता है।
- श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करने से दांपत्य जीवन हमेशा खुशहाल रहता है। घर परिवार खुश रहता है। दांपत्य जीवन एवं परिवार में शांति बनी रहती है। एवं आपस में मधुर संबंध स्थापित होते हैं।
- श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करने से शत्रु पराजित होते हैं। एवं शत्रुओं को सतबुद्धि प्राप्त होती है। जिससे वे शत्रुता को भूल कर मधुर सम्बन्ध स्थापित करते हैं।
- अगर कोई युवा व्यक्ति किसी परीक्षा या प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा है, या कोई नौकरी कर रहा है, या कोई उद्योग धंधा कर रहा होता है, तो उनके लिए श्री सरस्वती चालीसा का पाठ अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होता है। इस चालीसा का पाठ करने से याददाश तेज होती है। मन में शांति बनी रहती ही है। एवं हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
- श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करने से पापों का नाश होता है, एवं व्यक्ति सदमार्ग पर चलने लगता है। उसकी बुद्धि उसे अच्छे कार्यों को करने के लिए प्रेरित करती है। जिससे उसकी समाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
- श्री सरस्वती चालीसा का पाठ सच्चे ह्रदय से शांतिपूर्वक पाठ करने से प्रत्येक इच्छित कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। उसकी आर्थिक स्थिति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। उसकी गरीबता दूर होकर वह धनवान बन जाता है।
- श्री सरस्वती चालीसा का सच्चे ह्रदय एवं भक्ति के साथ पाठ करने से व्यक्ति के मान-सम्मान में वृद्धि होती है। एवं उसकी समाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होने के साथ ही उसकी कीर्ति चारों और फैलती है।
- श्री सरस्वती चालीसा का नियमित पाठ करने से भूत-प्रेत, जादू-टोना, नजर का दोष आदि शैतानी शक्तियों से छुटकारा मिलता है।
- श्री सरस्वती चालीसा का पाठ बुजुर्गों के लिए अत्यंत फायदेमंद होता है। श्री सरस्वती चालीसा के नियमित पाठ से बुजुर्गों में एक नया उत्साह जागृत होता है। परिवार एवं समाज में उनको विशेष सम्मान मिलता है।
- श्री सरस्वती चालीसा का नियमित पाठ करने से एक पराक्रमी, यशस्वी, तेजस्वी एवं अलौकिक संतान की प्राप्ति होती है।
- श्री सरस्वती चालीसा के पाठ से अत्यंत कठिन कार्य भी सहजता पूर्वक संपन्न होने लगते हैं। इसके नियमित पाठ से व्यक्ति इतना ज्ञानी, बुद्धिमान एवं बलवान बन जाता है कि, कठिन से कठिन कार्य भी सहजता के साथ पूर्ण कर लेता है।
माँ सरस्वती की पूजा करने की उचित विधि
माँ सरस्वती की पूजा करने के लिए प्रातःकाल उठकर स्नान आदि कर के स्वच्छ कपड़े धारण कर निश्चिन्त होकर सच्चे ह्रदय से भक्ति भाव के साथ अपने पूजा घर में जाकर माँ सरस्वती की मूर्ति के समक्ष बैठ जाना है। तत्पश्चात कलश की स्थापना करनी है। एवं विधि-विधान के साथ प्रथम पूज्य भगवान् श्री गणेश की पूजा करनी है। क्योंकि किसी भी पूजा पाठ को करने से पहले श्री गणेश भगवान् की पूजा करना अनिवार्य होता है। और तभी पूजा एवं उससे सम्बंधित कार्य सफल हो पाते हैं।
इसके पश्चात माँ सरस्वती देवी की मूर्ति पर गंगाजल छिड़कना है। इसके पश्चात माता सरस्वती देवी को फूल, सिंदुर बिंदी तथा अन्य श्रृंगार सम्बंधित वस्तुएं अर्पित करें। एवं मात सरस्वती देवी को श्वेत वस्त्र धारण कराएं। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जगत से उदासी एवं अज्ञानता को समाप्त करने के लिए ही भगवान् ब्रह्मा जी ने माँ सरस्वती देवी की उत्पत्ति की थी। वैसे तो माँ सरस्वती देवी के लिए बसंत पंचमी एवं दीपावली का दिन अत्यंत लाभकारी एवं शुभ माना गया है।
परन्तु जो व्यक्ति नियमित रूप से रोजाना माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना करता है। उसे बुद्धि, धन, बल ज्ञान, विवेक की प्राप्ति होती है। उसके जीवन में सुख सौभाग्य से परिपूर्ण खुशहाली छायी रहती है। जीवन सुख-सौभाग्य से परिपूर्ण रहता है। गुरूवार के दिन माँ सरस्वती की पूजा में सरस्वती चालीसा का पाठ जरूर पढ़ें। इससे जीवन में आश्चर्यजनक एवं सकारात्मक परिवर्तन होता है। माँ सरस्वती की कृपा एवं आशीर्वाद जिस व्यक्ति को प्राप्त होता है। उसके जीवन में कोई आभाव नहीं होता है।